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कानून समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए बनने चाहिए

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बिहार के दरभंगा जिले में एक पंड्ता की छोरी  तनु प्रिया और कोई मंडल का छोरा है राहुल कुमार दोनों नर्सिंग की पढ़ाई करैं थे, जिन नै ब्याह कर लिया और पंडत जी ने मंडला का छोरा गोली तैं मार दिया।  इब छोरी पंडत के पूरे कुणबे ने कत्ल की कॉन्सपिरेसी में शामिल बतावे है सुधा अपनी बाहण के।  जैसा कि अपने देश में नियम सा बना हुआ है सब लड़का लड़की की फेवर में यह कहकर कूद पड़े कि वे बालिग थे और अपनी इच्छा से ब्याह कर सकते थे, किसी बाप या परिवार को बीच में कूदने का अधिकार नहीं और कत्ल का तो बिल्कुल नहीं है।  समस्या शादी या कत्ल में नहीं है समस्या की असल जड़ है भारत में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून और बाद के वे कानून जो अंग्रेजों की नकल से यहां बनाए गए हैं (जैसे कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955), जो भारतीय मुख्यधारा समाज की रीति और व्यवहार के बिल्कुल खिलाफ हैं।  लगभग पूरे UK यानी वेल्स, स्कॉटलैंड, इंग्लैंड और नॉर्दन आयरलैंड में और USA में भी पैतृक संपत्ति पर बच्चों का सीधा कानूनन अधिकार नहीं है। साथ ही 18 वर्ष की बालिग उम्र में पहुंचते ही लगभग बच्चे पार्ट टाइम काम करके अपने खर्च उठा...

क्यों खालिस्तान भिंडरवाले के नाम चिपकाया गया

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क्या भाजपा और कांग्रेस दोनों ही शामिल थे ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार कॉन्सपिरेसी में... ❓❓❓❓❓❓ #इंदिरा_गांधी सरकार द्वारा संत #जरनैल_सिंह_भिंडरावाले का शिकार उसी तरह #फर्जी_प्रोपेगेंडा के आधार पर किया गया जैसे #सद्दाम_हुसैन का अमेरिका ने किया था। गुरुद्वारा हमरिंदर साहब से रॉकेट लांचर और AK 47 जैसे हथियारों का जखीरा मिलना बताया गया था। कमाल की बात देखिए कि संत भिंडरवाले, शबेग सिंह और उनके साथियों ने ये प्रयोग भी नहीं किए तो क्या म्यूजियम में सजाने के लिए थे? मतलब ये कि बाद में बरामद किए बताए गए जिनके कभी पुख्ता सुबूत नहीं मिले की ये कैसे प्राप्त हुए।  जरनैल सिंह भिंडरावाले ने कभी #खालिस्तान शब्द के नाम से अलग राज्य की मांग नहीं की। एक वीडियो जिसमें एक पत्रकार ने उनसे पूछा भी था कि आप खालिस्तान की मांग करते हैं ऐसा सरकार आरोप लगाती है आप पर तो भिंडरवाले का जवाब था कि "असी ते मांग्या नई जे धक्के देंदे हैं ते असि ले ल्यांगे"।  उन्होंने #आनंदपुर साहिब समझौते के तहत पंजाब को अधिक स्वायत्तता देने की मांग की थी।  उस दौर में खालिस्तान की जोरदार मांग #जगजीत_सिंह_चौहान ने उठाई थी जिसका सीध...

भिवानी के मुक्के आज भी दुनिया पर भारी हैं।

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 भिवानी के मुक्के आज भी दुनिया पर भारी हैं।  कोच भीम अवॉर्डी संजय कुमार के साथ पूजा बोहरा और नूपुर  बॉक्सिंग की दुनिया में बड़ा हस्ताक्षर, एशियन खेलों के लगातार दो बार के स्वर्णपदक विजेता एकमात्र भारतीय स्वर्गीय #कप्तान_हवा_सिंह की लगाई पौध से भारत को एक के बाद एक शानदार मुक्केबाज मिलता रहा है।  --------------------------------------------------------- बॉक्सर नीरज गोयत पूजा बोहरा और नरेंद्र मोर भारतीय महिला बॉक्सिंग में जबरदस्त एंट्री की थी निमरीवाली गाम की #पूजा_बोहरा (पूजा रानी) ने 2009 में तत्कालीन टॉप बॉक्सर प्रीति बेनीवाल को यूथ नेशनल में हराकर। उसके बाद पूजा ने एक के बाद एक शानदार जीत हासिल की जिसमें एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप्स में 2 स्वर्ण के साथ 4 मेडल, एशियन गेम्स का ब्रॉन्ज मेडल और अभी आस्ताना में हुए विश्व बॉक्सिंग कप में रजत पदक जीतना हो।  -------------------------------------------------------- #नूपुर_श्योराण चरखी दादरी के उमरावास गाम की लड़की ये नया उभरता हुआ नाम है चरखी दादरी की लड़की ने 80 किलोग्राम भारवर्ग में अभी आस्ताना में विश्व बॉक्सिंग कप म...

मणिपुर की "रानी" वो महान स्वतंत्रता सेनानी

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 वो पहाड़ों की लड़की जिसे नेहरू ने "रानी" कहा ...  #तमेंगलोंग की ऊँची पहाड़ियों के बीच बसा था एक छोटा-सा गाँव—#लोंगकाओ। वहाँ की सुबहें धुंध में लिपटी होतीं, और रातें जुगनुओं की रोशनी में चमकतीं। गाँव के बुज़ुर्ग अक्सर आग के चारों ओर बैठकर बच्चों को किस्से सुनाते थे— देवताओं, योद्धाओं, और वीरांगनाओं के किस्से। एक रात, जब बाँस के चूल्हे पर भाप उड़ाता चाय का बर्तन चढ़ा था, दादी ने कहा— "बच्चो, आज मैं तुम्हें हमारी अपनी रानी की कहानी सुनाऊँगी… रानी गाइदिन्ल्यू की।" बहुत साल पहले, 1915 की एक ठंडी सुबह, इस गाँव में एक बच्ची ने जन्म लिया—गाइदिन्ल्यू। बचपन में वह जंगलों में फूल तोड़ती, नदी में मछलियाँ पकड़ती, और पहाड़ की चोटियों पर दौड़ लगाती। पर उसके भीतर एक अलग ही चमक थी—जैसे उसे बड़े कामों के लिए भेजा गया हो। जब वह 13 बरस की हुई, तो गाँव में एक नई लहर उठी—"#हीरका आंदोलन"। इसे उसके चचेरे भाई #जादोनांग चला रहे थे। वे कहते— "हम अपने पुरखों की संस्कृति को बचाएँगे, अंग्रेज़ों के सामने नहीं झुकेंगे!" गाइदिन्ल्यू ने यह सुना और बोली— "अगर लड़ना है, तो मै...

देवनागरी लिपि का आविष्कार और विकास

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 #देवनागरी_लिपि_का_आविष्कार_या_विकास  देवनागरी भारत की एक प्रमुख लिपि है, जिसमें आज, हिन्दी, संस्कृत, मराठी, नेपाली अनेक भाषाएं लिखने का काम होता है।  लिपि के विकास का एक लम्बा इतिहास है, 6वीं से 7वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास देवनागरी लिपि का प्रारंभिक रूप उभरने लगा। 10वीं शताब्दी ई. तक यह एक पूर्ण विकसित लिपि के रूप में स्थापित हो चुकी थी। इस लिपि को विशेष रूप से हिंदी साहित्य, संस्कृत ग्रंथों को लिखने के लिए मानकीकृत किया गया था। अब आता है प्रधान की देवनागरी का विकास कैसे हुआ?  लगभग तीसरी शताब्दी ई. पू. से #ब्रह्मी लिपि से देवनागरी का मूल स्रोत है। यह लिपि #मौर्यकालीन अशोक के शिलालेखों में देखने को मिलती है।  4थी और 6वीं शताब्दी ई. पू. में ब्राह्मी से विकसित होकर विभिन्न प्रादेशिक रूपों में विभाजित होते हुए #गुप्त काल तक यह काफी सुधार से गुजर चुकी थी और बड़े और गोलाई वाले अक्षरों में बदल चुकी थी लिपि #गुप्त_लिपि भी कहलाई।  7वीं शताब्दी के बाद सिद्धमातृका लिपि निकली जो आगे चलकर #नागरी लिपि कहलाई।  इसी नागरी लिपि का मानकीकृत, परिष्कृत रूप लगभग 10वीं शताब...

क्यों बेगम बानो को मां बनाया हरि सिंह नलवा ने

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जनरल #हरि_सिंह_संधू (नलवा) बहुत ही उच्च कोटि के जनरल, प्रशासक, उच्च कोटि के मानवीय मूल्यों और धार्मिक मूल्यों के प्रति दृढ़ और निष्ठावान व्यक्ति थे। उनके निजी जीवन से जुड़ा एक किस्सा खासा मशहूर है जो उनके उच्च नैतिक चरित्र और सिख धर्म के सिद्धांतों के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है, वह #बेगम_बानो के साथ उनकी मुलाकात का है। एक बार, जब हरि सिंह नलवा अपनी सेना के साथ #जमरूद, अफगानिस्तान (जमरूद का किला भी सरदार हरि सिंह नलवा का ही बनवाया हुआ था) में डेरा डाले हुए थे, तो एक स्थानीय मुस्लिम महिला, जिसका नाम बानो बेगम था, सिखों के डेरा डालने को देख रही थी। उसे हरि सिंह नलवा बहुत आकर्षक और प्रभावशाली लगे, और उसने सोचा कि सिखों का यह सेनापति एक ऐसा अच्छा व्यक्ति होगा जिससे उसे एक बेटा हो सकता है। एक दिन, बानो जनरल से मिलने आई, जो अपने तम्बू में बैठे थे। जब उनके पहरेदारों ने उन्हें बताया कि एक स्थानीय महिला उनसे मिलना चाहती है, तो हरि सिंह को नहीं पता था कि यह महिला कौन है या वह क्या चाहती है, लेकिन उन्होंने उसे अपने तम्बू में आने की अनुमति दे दी। बानो ने कहा, "मैंने सिखों के बारे ...

भारत के नक्शे पर हरियाणा प्रदेश का उदय

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 1940 से 1960 का दशक वो दौर था जब संयुक्त पंजाब को विभाजित करने के लिए पंजाब के नेता बहुत बढ़चढकर आंदोलन कर रहे थे। भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के लिए उन्होंने अलग पंजाबी सूबा बनाने के लिए आंदोलन छेड़ा। उसी दौर में आज के हरियाणा प्रदेश के इलाके के नेता अपने इलाके की चिंता में थे कि उपक्षेत और तिरस्कृत इस इलाके का उद्धार कैसे हो।  1955 में पंजाब के अकाली दल ने जोरदार मांग उठाई कि भाषाई आधार पर अलग पंजाबी सूबा बनाया जाए जिस से पंजाबी भाषी लोगों का अपना भाषाई और सांस्कृतिक विकास सुनिश्चित हो।  तत्कालीन वरिष्ठ अकाली नेता मास्टर तारा सिंह ने "पंजाबी सूबा जिंदाबाद" का नारे देकर आवाज को बुलंद किया उन्होंने जनसभाएं की मांगपत्र सौंपे, जिसके कारण एक तरफ जहां हरियाणा के गैर पंजाबी इलाके में असंतोष और अनिश्चिता और बढ़ गई। 1960 में जनगणना में पंजाबी भाषी क्षेत्रों में मास्टर तारा सिंह और संत फतह सिंह के जबरदस्त हस्तक्षेप से  क्योंकि पंजाबी और सिक्ख बहुल राजनीति के चलते हरियाणा के जिले, शहर और गांव पहले उपेक्षित से थे राजनीतिक प्रतिनिधत्व की कमी अलग थी।  हरियाणा क्षेत्र में मुख...