माँ बाप की धरोहर को जिंदा रखना
माँ बाप की धरोहर को जिंदा रखना
जब घर में नया मेहमान आता है, यानी बच्चा जन्म लेता है तो घर भर में ख़ुशी का माहौल होता है, अडोस पड़ोस, भाई बंधू, रिश्तेदार, मित्र मंडली सब तरफ ख़ुशी और बधाई का माहौल होता है।
नवागंतुक मेहमान को एक नज़र देखने भर को हर कोई लालायित होता है। दादा-दादी, चाचा -चाची, ताऊ-ताई बुआ-फूफा, नाना- नानी, मामा - मामी सब बस सबसे पहले नन्हें मेहमान को गोद में उठा लेना चाहते हैं, एक होड़ लगती है शक्ल नैन नक्श मिलाने का दौर चलता है।
चाचा-बुआ में युद्ध होता है कि ये उसका इनाम है।
जैसे ही नानंके में खबर पहुचंती है मामा को बेचैनी हो उठती है कि बस पंख लगा कर अभी उड़ जाऊं।
पीलिया पहुचने तक कहाँ इतंज़ार हो पाता है।
माँ एक नज़र देखती है और नज़रों से ही नज़र उतार लेती है। जी भर के प्यार करती है उसका हर जतन होता है भर भर के दूध उतरे, बुआ दादी गोद में लेकर खिलाती हैं हाथों में ही मीठे उलाहने देती हैं।
और पिता छुपी हुई आँखों से उसे देखता है, नज़र चुरा के शक्ल मिलाता है, गोद में लेते शर्माता है पर अकेले में बैठकर मुस्कुराता है।
उस जीव को हर कोई अपने अपने तरीके से जी भर के जीता है। बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है घर का हर इंसान चिकित्सक होता जाता है, आहार विशेषज्ञ बनता जाता है। जरा सी छींक पर घर भर में हर कोई पंजों पर आ जाता है। रात रात भर माँ बच्चे को सूखे बिस्तर पर सुलाने की जुगत में जागती रहती है। पिता बस एक आहट पर उचकने लगता है। जिस टोरेदार मर्द ने पानी भी खुद से पीना शान के खिलाफ समझा हो वो खुद ही लेकर ठंडा खाना खाने लगता है। सुबह चाय बनाता है रात में बच्चे के लिए बिछौने लगता है।
बच्चा बड़ा होने लगता है अच्छे से अच्छा स्कूल खोजा जाता है, यारों मित्रों से सलाह की जाती है और अपनी हैसियत से थोड़ा ऊपर या बराबर का तो जरूर स्कूल फाइनल किया जाता है। नन्हे बच्चे की नई स्कूल की वर्दी, किताबें, खाने का डिब्बा, पानी की बोतल अच्छे से अच्छी खरीदी जाती है। जब सुबह तैयार होकर नन्हा या नन्ही जब पहले दिन विद्यालय जाने को तैयार होता है या होती तो एक अच्छा सा फोटो सेशन होता है। नज़रें उतारी जाती हैं।
पिता जो शायद अपने वक़्त में ख़ूब बदमाश और शरारती भी रहा हो अपने नन्हे के अध्यापक के आगे असीम शिष्टाचार से हाथ जोड़कर सावधान की मुद्रा में खड़े होकर बात करता है और बस उस अध्यापक को ही खुदा का रूप मानता है।
सुबह से श्याम तक इसी बच्चे के इर्द गिर्द जिंदगी घूमने लगाती है जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और माता पिता सूर्य की परिक्रमाँ करते हैं दिन रात एक करते हैं अपने सपने को उस बच्चे के रूप साकार करने के लिए।
रोलेक्स का शौकीन पिता टाइटन पर आ जाता है, ज़ारा की शौकीन माँ हलवाई हट्टे पर आ जाती है।
सब कुछ सिमट कर बस बच्चो पर आ टिकता है। बच्चा जैसे जैसे बड़ा होने लगता है वो विद्वान् होने लगता है बहस करने लगता है जिद करने लगता है, कभी प्यार से कभी डांट कर कभी मार कर उसको सीधा रखने की कवायद चलती है। हर तरह से बच्चे को अच्छी शिक्षा और हर इच्छा पूरी करने की चेष्टा माँ बाप करते हैं।
डांट डपट और मार भी सब होती है क्योंकि वो ही अपनी असली पूंजी है। कोई अपनी आँखों के सामने अपनी पूंजी को ख़राब होने देगा भला? माँ बाप के लिए औलाद से बढ़कर तो कुछ भी नहीं हो सकता। अपना अंश कैसे खुदा से भी प्यारा नहीं होगा?
जब भी बोर्ड का परिणाम घोषित हो, कहीं विश्वविद्यालय में एडमिशन की बात हो या नौकरी पाने की, हर माँ-बाप से निवेदन है जैसा भी हो सर माथे, अपने जिगर के टुकड़ों को इतना मत सता देना की बस यहीं जिंदगी खत्म है।
हर उस बच्चे से हाथ जोड़कर निवेदन है कि परिणाम देखने से पहले एक बार अपने बचपन की फोटो एलबम जरूर देखें और वादा करें खुद से की मा-पिताजी की आँख में कभी ना सूखने वाले आंसू नहीं देंगे। जीवन में मेहनत के बावजूद परिणाम जैसा भी आये, उनकी पूंजी जो आपका जीवन है, उसपर कोई आंच नहीं आने देंगे।
जीवन में सफलताएं, विफलताएं क्षणिक हैं आज आप किसी काम में विफल हैं तो कल दूसरे काम में सफल होंगे।
परिणाम से निराश होते तो अब्दुल कलाम आज़ाद कभी हमारे आदर्श और भारत का अभिमान ना बनते, जीवन से निराश रहते तो रामप्रसाद बिस्मिल कभी भारत माँ का तिलक ना होते।
निराश ना हों जीवन बहुत ख़ूबसूरत है इसको ज़िंदा रखें।
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