बाल गंगाधर तिलक एक अलग परिचय
इंडोनेशिया के बाली द्वीप समूह में वर्षों से गणेशोत्सव मनाया जाता है जिसे भारत में पहली बार लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक लेकर आए थे। हालांकि उनका तर्क था, अंग्रेजों के खिलाफ स्वदेशी की आग लोगों के बीच जगा रहे हैं किंतु शिवाजी जयंती और गणेशोत्सव के नाम पर मुस्लिम विरोध भी बाल गंगाधर तिलक ने शुरू करवाया। शिया मुसलमानो के मुहर्रम का विरोध करने का तिलक ने आह्वाहन किया जबकि उस वक्त तक गैर मुस्लिम आबादी खासकर हिंदू आबादी मुहर्रम में शामिल होती थी। (मैं लगभग 10 वर्ष पहले नागपुर में मुहर्रम और रामनवमी हिंदू और मुसलमानो को साथ मानते देख चुका हूं) वो भी तब जब मुहम्मद अली जीनाह उनके बहुत करीबी और विश्वासपात्र थे तिलक पर हुए अधिकतर मुकदमों में जिन्ना ही उनके वकील थे।
तिलक की कथनी और करनी में काफी विरोधाभास पाए जाते हैं माना जाता है की शिवाजी जयंती का कार्यक्रम भी तिलक ने राजनीतिक लाभ के लिए प्रारंभ किया था वरना उसी दौर में वो और उनके जैसे रूढ़िवादी ब्राह्मण शिवाजी महाराज को एक मराठा के तौर पर क्षत्रिय मानने का विरोध किया करते थे।
इतना ही नहीं तिलक अंतर्जातीय विवाह के घोर विरोधी थे खुलकर केसरी नामक अखबार से अंतर्जातीय विवाह पर लिखा करते थे, उनका विरोध और तीव्र होता था खासकर तब जब उच्च जाति की महिला निम्न जाती में ब्याही जाए, जबकि दूसरी तरफ देशस्थों, चितपावनों और करहदेस तीन महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण समूहों को "जाति विशिष्टता" छोड़ने और अंतर्जातीय विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे, ये भी एक उदाहरण है उनकी दोहरी सोच का।
महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मे बाल गंगाधर तिलक महिलाओं की शिक्षा और उत्थान के सख्त विरोधी थे, तिलक का मानना था कि हिंदू महिलाओं को आधुनिक शिक्षा नहीं मिलनी चाहिए वे केसरी में इसके खिलाफ जमकर लिखते थे।
उनके रूढ़िवादी होने का उच्च प्रमाण ये है की 1890 में, जब ग्यारह वर्षीय फुलमनी बाई की अपने से बड़ी उम्र के पति के साथ यौन संबंध बनाते समय मृत्यु हो गई, तो पारसी समाज सुधारक बेहरामजी मालाबारी ने लड़की की शादी की पात्रता की आयु बढ़ाने के लिए सहमति आयु अधिनियम, 1891 का समर्थन किया। बाल गंगाधर तिलक ने विधेयक का विरोध किया और कहा कि पारसियों के साथ-साथ अंग्रेजों का हिंदू धार्मिक मामलों पर कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। तिलक ने 11 वर्षीय लड़की को "दोषपूर्ण महिला अंगों" के लिए दोषी ठहराया और सवाल किया कि पति को "एक हानिरहित संबंध बनाने के लिए शैतानी तरीके से कैसे सताया जा सकता है"। तिलक ने 11 वर्षीय लड़की को "प्रकृति की खतरनाक शैतानियों" में से एक कहा था।लैंगिक संबंधों के मामले में तिलक का कोई प्रगतिशील दृष्टिकोण नहीं था।
कोल्हापुर रियासत (प्रिंसली स्टेट) के शासक शाहू का तिलक के साथ कई बार टकराव हुआ क्योंकि तिलक मराठों के लिए शूद्रों के लिए बनाए गए पौराणिक अनुष्ठानों के ब्राह्मणों के फैसले से सहमत थे। तिलक ने यहां तक सुझाव दिया कि मराठों को ब्राह्मणों द्वारा उन्हें दिए गए शूद्र दर्जे से "संतुष्ट" या "तृप्त" रहना चाहिए।
अपनी मृत्यु से दो साल पहले, 1918 में तिलक ने अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए एक याचिका पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, हालांकि इन्हीं बाल गंगाधर तिलक ने पूर्व में एक बैठक में इसके खिलाफ बात की थी। यानी तिलक की कथनी और करनी में विरोधाभास एक बार नहीं बार बार देखने को मिलता है।
वह राजनीतिक लाभ के लिए किए गए कामों और अपनी रूढ़िवादी सोच के बीच ताउम्र झूलते रहे।
स्वदेशी के उद्घोषक तिलक द्वारा पुणे स्तिथ मशहूर फर्गुसन कॉलेज जो अब फर्गुसन विश्विद्यालय के नाम से जाना जाता है, स्थापित किया गया था। फर्ग्यूसन कॉलेज बॉम्बे के तत्कालीन गवर्नर सर जेम्स फर्ग्यूसन (जो स्कॉटिश मूल के थे) के नाम पर है। अंत में वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने अंतिम सांस तक स्वराज की मांग रखी।
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