संप्रभुता, संघवाद और स्वायत्तता Souvernity, Federalism and Autonomy
संप्रभुता, संघवाद और स्वायत्तता Souvernity, Federalism and Autonomy
भारतीयों को खास तौर से souvernity, federalism and autonomy के मायने समझने और इन शब्दों के मर्म को समझने की आवश्यकता है।
बात हरियाणा की की जाए तो यहाँ दो ही चीजें फेमस हैं यूथ में एक तो भोले का नाद और दूसरा पोलिटिकल पार्टीज के राजकुमारों के जयकारे। न कोई लीक से हट कर पढ़ता है, न ही विचार करता, सबसे बड़ी दिक्कत कोई किसी की सुनता भी नहीं।
नागालैंड, मणिपुर, पंजाब, तमिलनाडु, कश्मीर, आदिवासियों इत्यादि की समस्याओं और डिमांड्स को सरकारी वर्जन से अलग पढ़ना और समझना चाहिए।
राष्ट्रवाद के सूखे नारे लगाने से कुछ नहीं होता। राष्ट्रवाद एक भ्रामक शब्द है इसको भी समझने की आवश्यकता है। फ़ेडरल सिस्टम में राष्ट्रवाद के लिए कोई जगह है ही नहीं और एक मजबूत देश के लिए सबसे जरूरी है फ़ेडरल सिस्टम का मजबूत होना, लोगों और राज्यों की सौवेर्निटी और ऑटोनोमी की रक्षा एवं इज्जत होना। देश के फेडरल सिस्टम को नुकसान उसी दिन से होना शुरू हो जाता है जब लोगों और राज्यों की संप्रभुता और स्वायत्तता पर चोट होनी प्रारंभ होती है। जरूरी है देश के फेडरल ढांचे, संप्रभुता और स्वायत्तता को मजबूत बनाए रखने के लिए लोगों, समाज और राज्यों की संप्रभुता और स्वायत्तता का सम्मान और रक्षा की जाए।
समाजशास्त्र के अनुसार मजबूत समाज ही मजबूत और सशक्त देश का निर्माण करता है और समाज मजबूत तब होता है जब व्यक्ति परिवारों की स्वायत्तता और संप्रभुता सुरक्षित और रक्षित हो। एक देश की ताकत, मजबूती, संघ, संप्रभुता और स्वायत्तता उसके नागरिकों से झलकती है।
सशक्त और समृद्ध नागरिकों से समृद्ध और सशक्त समाज का निर्माण होता है और उसी से देशव्यापी संघवाद यानी फेडरल ढांचा मजबूत होता है, जिस देश में लोगों, समाज और राज्यों की स्वायत्तता और संप्रभुता का आदर होगा उस देश की मजबूती स्वयं साक्षी होगी।
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