कितना कारगर होगा भारतीय खेल प्रशासन विधेयक 2025
जिस तरह से भारत में विभिन्न चरणों में खिलाड़ियों और खेलों के विकास के लिए लगातार प्रयास किए जाते रहें हैं और जिस तरह टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों का बेहतरीन प्रदर्शन रहा था, लेकिन अगले ही ओलंपिक में यह प्रदर्शन फिर से काफी नीचे आ गिरा था। विभिन्न न्यायालयों में 300 से ज्यादा मामलों का लंबित होना, विभिन्न न्यायालयों के अलग अलग तरह के आदेश आना, वर्षों तक खेल महासंघों पर प्रशासकों का बैठे रहना। इन सब के बीच राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक का आना एक आशा भरी किरण है। खिलाड़ियों पर केंद्रित यह खेल विधेयक लंबी छिड़ी बहस पर एक अंकुश लगाने का काम करेगा। खेल प्रशाशन, नियमन, पॉलिसी बनाने में सब जगह अब खिलाड़ियों को मौका मिलेगा।
प्रस्तावित खेल शासन विधेयक एक सामयिक और महत्वपूर्ण सुधार है जिसका उद्देश्य भारत में खेलों के शासन के तरीके में बदलाव लाना है पारदर्शिता, जवाबदेही और व्यावसायिकता को सर्वोपरि रखना।
लंबे समय तक जिला स्तर से लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर तक, राज्य, राष्ट्रीय, दक्षिण एशियाई, एशियाई, राष्ट्रमंडल और ओलंपिक खेलों में काम करने, जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय खेल संघों में एक प्रशासक के तौर पर काम करने के अपने अध्ययन और एक्सपीरियंस के आधार पर मैं मानता हूं कि यह समय की मांग की मांग थी और सही समय पर यह विधेयक आया है।
विधेयक को ईमानदारी और खेल भावना के अनुरूप जैसा की अक्सर न्यायालयों में खेल मंत्रालय के वकील कहा करते थे "खेल स्पिरिट" से लागू किया गया तो निसंदेह यह पूरे खेल जगत, खिलाड़ियों, आमजन और वैश्विक स्तर पर भारत के खेलों के प्रति ईमानदार और सशक्त बनाएगा और एक विश्वास बहाल करेगा। विधेयक में हालांकि प्रशासन, उम्र, टेन्योर इत्यादि को लेकर अभी बहुत से मामलों पर कोई स्पष्टता नहीं है फिर भी मेरा मानना है यह विधेयक भारतीय खेल संस्थानों, खेल संघों को सशक्त बनाएगा।
जैसा कि खेल विधेयक से समझा जा सकता है यह एक खेल नियामक बोर्ड के गठन का प्रस्ताव करता है। एक सर्वोच्च प्राधिकरण जो राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) को मान्यता प्रदान करने और उनके ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व नैतिक, वित्तीय और प्रशासनिक मानकों के अनुपालन की निगरानी के लिए जिम्मेदार होगा। पूर्व में चल रहे कठोर ढांचों के विपरीत इस निकाय विधेयक को प्रत्येक खेल के लिए विशिष्ट मान्यता मानदंड निर्धारित करने का लचीलापन प्राप्त होगा और विभिन्न विषयों की विशिष्ट आवश्यकताओं को देखते हुए भारत में खेल शासन जवाबदेही और पारदर्शिता की ओर नया कदम होगा।
भारतीय खेल महासंघों के व्यावसायीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम भारतीय ओलिंपिक संघ, भारतीय पैरालिंपिक समिति और राष्ट्रीय खेल महासंघों का पुनर्गठन है। विधेयक कार्यकारी समितियों को 15 सदस्यों तक सीमित करता है और महासंघ की संचालन संस्था असाधारण योग्यता वाले दो एथलीटों तथा एथलीट्स कमीशन के दो एथलीटों की नियुक्ति को प्रोत्साहित करता है। इन परिवर्तनों का उद्देश्य शासन को प्रबंधन से अलग करना, अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप बनाना और कुशल प्रशासन को बढ़ावा देना है।
यह विधेयक भारतीय खेलों में आने वाले न्यायिक, भेदभाव व अन्य अवरोधों को रोकने के लिए एक ट्रिब्यूनल की प्रस्तावना करता है। जो एक अंतराष्ट्रीय खेल न्यायालय के मानकों में अनुरूप होगा।
विधेयक की महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक खेल महासंघों का देश की जनता के प्रति जवाबदेह होना है। खेल महासंघों की ये स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए सभी राष्ट्रीय खेल महासंघों को सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में लाकर सार्वजनिक जवाबदेही को भी बढ़ाता है, केवल संवेदनशील प्रदर्शन और चिकित्सा डेटा को छोड़कर। यह कदम नागरिकों को निर्णयों, वित्त पोषण और चयन प्रक्रियाओं की गहन जांच करने का अधिकार देता है जिससे खेल शासन में पारदर्शिता बढ़ती है। यह विधेयक एथलीट केंद्रित है और इससे जमीनी स्तर से प्रतिभाओं का विकास संभव होगा। खेल प्रशासकों के मनमाने निर्णय लेने पारदर्शिता की कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसे दीर्घकालिक मुद्दों का समाधान करके हुए यह विधेयक एक अधिक एथलीट केंद्रित, कुशल और विश्व स्तर पर को विश्वसनीय खेल प्रणाली की नींव डालता है।
खेल नियमन और प्रशाशन जितना पारदर्शी होगा खेलों के प्रशासन और नियमन पर विश्वास उतना ही बढ़ेगा और यह उतना ही आवश्यक है जितना कि एक खिलाड़ी की उत्कृष्टता।
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