उत्तरापथ से ग्रैंड ट्रंक रोड तक मौर्य साम्राज्य से आधुनिक भारत के राजमार्ग

ग्रैंड ट्रंक रोड जो 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में #अंग्रेजों द्वारा व्यवस्थित करके पुनः नामकरण से जाना गया था। यह रोड कोलकाता तब की ब्रिटिश राजधानी से पेशावर तक जाती थी। 



इस से पूर्व इस सड़क मार्ग का पुनरुद्धार जो सबसे ज्यादा ख्यात है वो सूरी वंश के संस्थापक #शेरशाह सूरी के नाम से जाना जाता है। शेर शाह ने इस मार्ग की लकड़ी, पत्थर मिट्टी इत्यादि से मरम्मत करके, छायादार पेड़, कोस मीनार बनाकर, धर्मशाला, कुएं इत्यादि बनाकर बढ़िया व्यवस्थित मार्ग तैयार किया था जो उस समय संभवतः उत्तर भारत का सबसे बड़े सड़क मार्ग था जो आज के बांग्लादेश के सोनारगांव से लाहौर और आगे काबूल तक विस्तारित था। 

इसके पूर्व यही मार्ग थोड़ा छोटा होकर #मौर्य साम्राज्य की सीमाओं में व्यवस्थित था जो तक्षशिला से शुरू होकर, पाटलिपुत्र से तम्रलिप्त यानी आज के पश्चिम बंगाल तक था उस दौर में इस मार्ग का नाम #उत्तरापथ बताया जाता है। इसी मार्ग को आगे चलकर शेरशाह सूरी ने #सड़क_ए_आज़म बनाया और अंग्रेजों ने #ग्रैंड_ट्रंक_रोड नाम दिया जो आज नेशनल हाइवे नंबर 44 और 19 के नाम से जाना जाता है। 

कोई भी मार्ग जब विकसित किया जाता है तो व्यापार और सेनाओं के आवागमन के मद्देनजर ही विकसित किया जाता है जिसमें भी मूल उद्देश्य व्यापार को सुगमित और तीव्र बनाया जाना विशेष होता है। 

मौर्य वंश हो, सूरी वंश, अंग्रेज हों या आधुनिक भारत की सरकारें राजमार्ग, यानी हाइवे बनाने के पीछे सबका उद्देश्य व्यापार ही होता रहा है।

गौरतलब है चीन का विख्यात #सिल्क_रूट इस मार्ग से इतर है जो भारत को नहीं छूता था न तब न अब।

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