सावन में क्यों जरूरी सरसों का तेल
पाचन शक्ति को सुधारता है
सरसों का तेल थोड़ा तीखा और गर्म प्रकृति का होता है, जिससे यह पाचन अग्नि (digestive fire) को प्रज्वलित करता है।
बरसात में अक्सर पाचन धीमा होता है, तो ये तेल शरीर को गर्माहट देकर गैस, अपच और भारीपन से राहत देता है।
सरसों के तेल में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल और एंटी-वायरल गुण होते हैं।
मानसून में जलवायु की नमी से संक्रमण फैलता है, ऐसे में यह शरीर की रक्षा करता है।
सावन में अक्सर लोगों को जोड़ दर्द, जकड़न या शरीर में भारीपन की शिकायत होती है।
सरसों के तेल से बने भोजन शरीर को अंदर से ऊष्मा देता है, जिससे दर्द और अकड़न कम होती है।
रक्तसंचार को बढ़ाता है और त्वचा के नीचे गर्मी पहुंचाता है, जिससे त्वचा में नमी बनी रहती है और सर्दी-जुकाम नहीं होता।
इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड और good cholesterol (HDL) बढ़ाने वाले गुण होते हैं।
मानसून में भारी और तले-भुने भोजन से बचने की सलाह दी जाती है, पर यदि हल्के रूप में सरसों के तेल में पकाया जाए तो यह हृदय के लिए बेहतर होता है।
एक और विशेष बात ये है कि सरसों दो रंगों में मिलती है काली और पीली उनमें उत्तम काली होती है जो अधिक तीखी और महकदार है काली सरसों में भी दो तरह का दाना आता है एक मोटा और एक छोटा दाना इनमें छोटा दाना ही असल और प्राचीन सरसों है जिसके आयुर्वेद में जिक्र हैं बाकी सब सरसों संकर प्रजाति हैं।
तो छोटी सरसों खरीदें और खुद ही लोकल मिल पर तेल निकलवाएं वही कोल्ड प्रेस्ड शुद्ध सरसों का तेल है जिसका कोई डॉक्टर आज तक नुकसान नहीं बता पाया पूरी तरह फायदे ही फायदे हैं चाहे शरीर पर मले, बालों में लगाएं या पकवान बनाकर खाएं।
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